तरुण मित्रा परिषद का उद्देश्य समाज के दबे-कुचले और पीछड़े वंचितों तक उनके जीवन की मूलभूत सुविधाओं को पहुंचाना है। उत्तर प्रदेश के हस्तिनापुर में बने श्रद्धा सदन के वो मुख्य संयोजक भी हैं। आधुनिक सुविधाओं से लैस 60 कमरों वाले इस केंद्र को बुजुर्गों के लिए बनाया गया था लेकिन उसकी मंजूरी नहीं मिलने के कारण अब इसके इस्तेमाल युवाओं को ट्रेनिंग देने, योगा और मेडिटेशन सेंटर के रुप में किया जा रहा है।
सहयोग के करीब सात साल की यात्रा को याद करते हुए ऊन्हें गर्व महसूस होता है कि जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी आज वो उसपर सरपट दौड़ रही है। मोदी जी की पहली ऐतिहासिक जीत पर अशोक रोड़ पर जो मोदी टी स्टॉल लगाई गई थी जिसमें करीब 30,000 लोगों ने चाय पी वो मनोज जी के ही प्रयासों का नतीजा था।
प्राकृतिक आपदा हो या कोई महामारी, जरूरत मंदों तक पहुंचने की शुरुआत उन्होंने अपने जीवन में काफी कम उम्र में ही कर दी थी। गुजरात भूकंप का जिक्र आते ही मनोज याद दिलाते हैं कि कैसे वो मित्रों की मदद से गुजरात गए और कई सारे कार्य किए। रापड़ के एकता नगर में जमीन खरीदी और 26 जनवरी को आए भूकंप के प्रभावितों के लिए 26 गज के सिंगल स्टोरी मकान की बुनियाद रखी और भूकंप प्रभावितों को सर छुपाने का मौका दिया। करोड़ों रुपये के इस प्रोजेक्ट के लिए उन्हें पूरा फंड दिल्ली से ही मिला। और इसमें चार संस्थाओं ने उनकी बढ़चढ़ कर मदद की।
कोरोना जैसी महामारी ने लोगों को पलायन करने पर जब मजूबर किया तो मनोज जी ने अपनी सहयोग संस्था की ओर से राशन, भोजन और राहत सामग्री बांटने में कोई देरी नहीं की और इसका कभी श्रेय भी नहीं लिया। इस कार्य के लिए ना तो किसी सोशल मीडिया के पोस्ट में और ना ही किसी टीवी या अखबार की खबरों में उन्होंने अपनी तस्वीर डलवाई । कोरोना से प्रभावित 400 लोगों में खाना बांटने की शुरुआत उनकी संस्था ने की और इसके जरिए देखते-ही-देखते वो करीब 1200 लोगों के भूख मिटाने का नेक काम करते रहे। इस कार्य में ‘सहयोग दिल्ली’ को बिकानेर वालों से भी बड़ी सहायता मिली जिससे उनका यह सपना साकार हो सका ।
आयुष मंत्रालय ने जब Arsenic Album 30 को कोरोना के खिलाफ जंग में सहायक बताया तो उसकी 6500 से अधिक खुराक सहयोग दिल्ली संस्था ने बांटी। बाद में दिल्ली सेंट्रल डीसीपी के अनुरोध पर इसकी 2000 शीशियाँ उनके कार्यालय में भी पहुंचवाईं जिसे सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट के पुलिस बल में बांटा गया।
सामाज के हरेक वर्ग की जरूरतों के लिए लगातार संघर्ष करने वाले मनोज जी राजघाट से विजय घाट तक यमुना पुश्ता को खाली कराने में काफी पहले एक बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। सामाजिक कार्यों के लिए परिवार के बड़ों से मिली प्रेरणा की वजह से वो कई छोटे-बड़े कार्यों से लगातार जुड़े रहे। राहगीर का ऐतिहासिक आयोजन भी उनके सामाजिक सरोकार की कहानी बयां करता है जिसमें करीब 25,000 लोगों ने हिस्सा लिया।
सीलिंग की समस्या के खिलाफ प्रदर्शन, युवक-युवतियों के विवाह की व्यवस्था, छात्रों के स्कॉलरशिप की सुविधा, खेल-कूद प्रतियोगिताओं का आयोजन जैसी गतिविधियों में वो पूरे मन से हमेशा लगे रहते हैं। दिल्ली गेट के पास बने मेट्रो स्टेशन का रास्ता अंबेडकर स्टेडियम की ओर दिया गया तो इसे लेकर भी उनहोंने आवाज उठाई। इसी का नतीजा है कि नए फेज में मेट्रो स्टेशन का रास्ता दूसरी छोर पर खोलने का प्रावधान किया गया है।
स्थानीय बाज़ारों में महिलाओं के लिए यूरिनल की व्यवस्था करवाने और उसे कैसे सफल बनाया जाए इसको लेकर भी मनोज जी ने कई बार प्रयास किए लेकिन संबंधित अधिकारियों, कार्यालयों और संस्थाओं के ठीक से नहीं समझ पाने के कारण उनके प्रयासों के बाद भी कोई बेहतर नतीजा नहीं निकल सका। लगातार और बड़े स्तर पर सामाजिक कार्य कईयों के लिए एक चुनौती नजर आ सकते हैं लेकिन ऐसे कार्यों में मनोज जी उत्साहित रहते हैं क्योंकि उन्हें ऐसे कार्यों से ऊर्जा मिलती है जो उन्हें युवा बनाए रखती है।
भविष्य के अपने सपनों की बात करते हुए वो कहते हैं कि अगर आने वाली पीढ़ियाँ मुझे एक सामाजिक सेवक और कार्यकर्ता के रुप में जानेंगी तो मैं उसे अपनी बड़ी सफलता मानूंगा। समाज के प्रति समर्पित इस सेवक को मौके और भी कई मिलेंगे और उनका संकल्प है कि वो उन कार्यों को भी संपन्न करने में कोई चूक नहीं करेंगे।